रसायन एक प्रयोगात्मक में विज्ञान है। यह विद्या विभिन्न खनिजों, वृक्षों, कृषि, विविध धातु के निर्माण और उसमें परिवर्तन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से अावश्यक औषधियों के निर्माण में उपयोगी है।
रसायनशास्त्रियों में नालंदा विद्यापीठ के आचार्य नागार्जुन को भारतीय रसायनशास्त्र के आचार्य माना जाता है।
नागर्जुन के 'रसरत्नाकार' और 'स्वास्थ्यमंजरी' जैसी पुस्तके लिखी थी।
आचार्य नागार्जुन ने वनस्पति औषधि के साथ रसायन औषधि के उपयोग का परामर्श दिया था।
पारे की भस्म बनाकर औषधि के रूप में उपयोग का प्रयोग नागार्जुन ने शुरू किया था।
नालंदा विद्यापीठ में रसायन विद्या के अध्ययन और संशोधन के लिए अपनी अलग रसायनशाला थी।
रसायनशास्त्रो के ग्रंथों में मुखरस, उपरस, दस प्रकार के विष,विविध प्रकार के क्षारों और धातुओं की भस्म का वर्णन है।
रसायन विद्या की पराकाष्ठा भगवान बुद्ध की धातु शिल्प से दृष्टिगोचर होती है।
बिहार के सुल्तानगंज में भगवान बुद्ध की 71/ 2 फुट ऊंची और 1 टन वजन की ताम्र मूर्ति प्राप्त हुई है ।
नालंदा के बुद्ध की 18 फुट ऊंची तामृमूर्ति प्राप्त हुई है।
7 टन वजन और 24 फुट ऊंचा सम्राट चंद्रगुप्त द्वितिय( विक्रमादित्य) द्वारा बनाया गया विजय स्तंभ अभी तक बरसात, धूप, छांव के उपरांत अभी तक काट(जंग) नहीं लगा है। यह भारतीय रसायन विद्या का उत्तम नमूना है।
प्राचीन भारत के विज्ञान का ज्ञान विश्व में स्वीकार्य हुआ है। हमारी संस्कृति विशाल और वैविध्यपूर्णहै। उसमें धर्म और विज्ञान, परंपरागत आदर्शो, व्यावहारिक ज्ञान और समाज का सुमेल समन्वय हुआ है जो विश्व के अधिकांश देशों में कम है।
Wednesday, January 16, 2019
रसायन विद्या
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