Thursday, January 31, 2019

द्वारका ,Dwarka

देवभूमि द्वारका गुजरात का एक जिला है। जिसमें द्वारका हिंदू तीर्थ स्थल सर्वाधिक पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है और चार धामों की यात्रा में से एक है। द्वारका भारत के पश्चिम में समुद्र के किनारे पर बसी हुई है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने उसे बताया था। यह श्री कृष्ण भगवान की कर्मभूमि है।
द्वारका भारत में भारत के साथ सबसे प्राचीन शहरों में से एक है पुराणों में वर्णित द्वारका के रहस्य का पता लगाने का प्रयास किया गया। लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कोई भी अध्ययन कार्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया। 2005 में द्वारका के रहस्यों से पर्दा उठाने का काम शुरू किया गया था।खोज अभियान में नौसेना ने मदद की। अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कई पत्थर मिले।लेकिन ज्ञात नही हो पाया कि यह  वही नगरी है अथवा जिसे भगवान श्री कृष्ण ने बसाया था आज भी यहां वैज्ञानिक समुद्र की गहराई में कैद इस रहस्य को सुलझाने में लगे हुए हैं। कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए थे, पर उन्होंने द्वारका में राज किया यहीं बैठकर उन्होंने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में ली थी।पांडवों के साथ रहे। धर्म की जीत कराई और शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी को मिटाया। द्वारका उस समय में राजधानी बन गई थी। बड़े बड़े राजा यहां कोई भी मामले श्री कृष्ण जी सलाह के बिना नही लेते थे। इस जगह का धार्मिक महत्व है।

लोग कहते हैं कृष्ण की मृत्यु के साथ उनकी बसाई हुई नगरी समुद्र में डूब गई थी।

Tuesday, January 29, 2019

Gursaiganj गुरसहायगंज

गुरसहायगंज उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले  में स्थित है गुरसहायगंज नगर पालिका है जो कि तंबाकू व्यवसाय से जुड़ा हुआ है यहां के पुरुष और महिलाएं को तंबाकू से रोजगार मिलता है। गुरसहायगंज लगभग 3 किलोमीटर जैसे क्षेत्र में फैला हुआ है गुरसहायगंज के आसपास के क्षेत्र कृषि व्यवसाय से भी जुडा़ हुआ  है गुरसहायगंज ग्रांट ट्रक रोड(GT Road) से जुड़ा हुआ है। रेलवे लाइन से भी जुड़ा हुआ है।

अहमदाबाद वन मॉल,Ahemdabad one mall, अल्फा मॉल शॉपिंग सेंटर

अहमदाबाद वन मॉल अहमदाबाद के वस्त्रापुर क्षेत्र के किनारे पर स्थित है यह 2011 में बनकर तैयार हुआ था इसके दो वेस्मेटं में पार्किंग है। अहमदाबाद मॉल में लगभग 500 ब्रांड है और पार्टी फ्लोर, प्ले जोन, मूवी इंटरटेनमेंट, आदि है।  यहां पर पंजाबी, गुजराती,राज्यस्थानी आदि हर एक प्रकार की  खाने की थाली मिलती है यहां पर लगभग 1000 गाड़ियों की पार्किंग की शुविधा है, अहमदाबाद मॉल के 8 गेट हैं। यहां पर हयात होटल भी है, यह अहमदाबाद का सबसे बडा होटल है। यहां शोप्पर्स स्टाप, लाइफ़स्टाइल, ट्रेंड्स, बिग बाजार, पैंटालूंस, मैक्स, रिलायंस डिजिटल, प्ले जोन आदि है।
यहां पर आने वाले कस्टमर 15 से 45 मिनट  प्रति कस्टमर समय निकालते हैं।

वर्ल्ड ट्रैक पार्क World track park, भारत का सबसे बड़ा मॉल

अगर भारत के सबसे बड़े  शॉपिंग सेंटर मॉल की बात करें  तो चेन्नई या दिल्ली या मुंबई जैसे बड़े-बड़े शहरों में  इतना बड़ा मॉल नहीं है  जबकि राजस्थान के जयपुर में स्थित वर्ल्ड ट्रेड  मॉल है। जो भारत का सबसे बड़ा सोपिगं मॉल है।
वर्ल्ड ट्रेड पार्क राजस्थान के जयपुर में वर्ल्ड ट्रेड पार्क वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नाम से जाना जाता है।
  भारत का सबसे बड़ा मॉल है यह लगभग 2लाख 40हजार  स्क्वायर फुट में फैला हुआ है। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की पार्किंग में 11 सौ गाड़ियों की पार्किंग है। 
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में 11 फ्लोर हैं यह 2012 में बनकर तैयार हुआ था। वर्ल्ड ट्रेड पार्क जयपुर शहर का सबसे बड़ा आकर्षण केंद्र है।
शॉपिंग की बात करें तो यहां पर बहुत सी विदेशी आउटलेट, फन जोन, प्ले जोन और मूवीज इंटरटेनमेंट आदि है।

नेपोलियन का जन्म, Born of napoleon

नेपोलियन का जन्म 1769 ईस्वी में कोरिया देश में हुआ था। नेपोलियन के पिता का नाम कार्लो बोनापार्ट था। जो पेशे से वकील थे। ने भोले ने ब्रिटेन की सैन्य अकादमी में शिक्षा प्राप्त की। सन् 1799ई. में नेपोलियन ने फ्रांस मे डायरेक्टरी के शासन का अंत कर दिया था तथा खुद पहला काउंसिल बना।इस काउंसलिंग ने फ्रांस के नए संविधान की रचना की।
सन् 1804ई.मे नेपोलियन खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया। नेपोलियन बोनापार्ट एक अन्य नाम लिटिल कॉरपोरल के नाम से जाना जाता है।
नेपोलियन को आधुनिक फ्रांस का निर्माता माना जाता है ।
सन्1830 ई.नेपोलियन ने बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की।
नेपोलियन ने कानूनों का संग्रह तैयार करवाया जिसे नेपोलियन कहा जाता है।
नेपोलियन ने इंग्लैड को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए महाद्वीपीय व्यवस्था लागू की।
अक्टूबर 1805 में इंग्लैंड के बीच ट्रागल्फर का युद्ध हुआ।
यूरोप राष्ट्र ने एकजुट होकर सन्1813ई.लिपजिक के मैदान में नेपोलियन को हराया।
इसके बाद नेपोलियन के बंदी बनाकर अल्बा द्वीप मे रखा गया,पर वहां से  नेपोलियन भाग गया।
सन् 1815ई.मे वाटरलू का युद्ध नेपोलियन के जीवन का अंतिम था जिसमें उसे पराजय मिली। और उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा। और उसे सेंट हेलेना दीप भेज दिया गया।
जहां सन्1812 ई.उसकी मृत्यु हो गई।
यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों के निर्माण का श्रेय नेपोलियन को है।
नेपोलियन ने फ्रांस की क्रांति के सिद्धांतों को अन्य देशों में पहुंचाया तथा जनसाधारण में स्वतंत्रता की भावना उत्पन्न की।

Monday, January 28, 2019

जर्मनी का एकीकरण , jarmani ka akikaran,Germany integration

19वीं सदी में जर्मनी अनेक छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। जिसमें सबसे शक्तिशाली राज्य  प्रशा था ।
जर्मनी के एकीकरण का श्रेय बिस्मार्क को है। बिस्मार्क प्रशा शासक विलियम प्रथम प्रधानमंत्री थे।
जर्मनी में राष्ट्रीयता की भावना जगाने का श्रेय नेपोलियन को है नेपोलियन ने छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर 39 राज्यों का एक संघ बनाया था, जिसका नाम राइन संघ के नाम से जाना जाता था।
सन् 1832 ईस्वी में प्रशा के जर्मनी के 12 राज्यों को सहयोग के आधार पर एक चुंगी-संबंधी समझौते को करके जालवरीन नामक आर्थिक संगठन का निर्माण किया।
बिस्मार्क जर्मनी का एकीकरण प्रशा के नेतृत्व में चाहता था। जर्मनी के एकीकरण के लिए बिस्मार्क का अॉस्ट्रीया एवं फ्रांस से युद्ध करना निश्चित हो गया था।
सन् 1832ईसवी से सन्1850 तक जर्मनी पर अॉस्ट्रिया का आधिपत्य था।
एकीकरण के क्रम में प्रशा को डेनमार्क, ऑस्ट्रिया तथा फ्रांस से युद्ध करना पड़ा था।
बिस्मार्क को 1862 ईसवी में प्रशा का चांसलर नियुक्त किया गया था।
सन् 1864 ई. में शेल्जविग तथा होल्सटीन के प्रश्न पर जर्मनी का डेनमार्क से युद्ध हुआ था। डेनमार्क पराजित हो गया था। दोनों के बीच गैस्टीन की संधि 1865 ई़  में हुई ।
अपनी कूटनीति में बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया को यूरोप की राजनीति में अकेला कर दिया। दोनों में सन् 1866ई़ मे युद्ध हुआ, जिसमें ऑस्ट्रिया की पराजय हुई और प्राग की संधि के अनुसार जर्मनी का राज्य भंग कर दिया गया था।
एकीकरण के अंतिम चरण में प्रशा एवं फ्रांस के बीच सन्1870ईसवी मे युद्ध हुआ, जिसमे फ्रांस की पराजय हुई। दोनों में फ्रैंकफर्ट की संधि हुई।
प्रशा का राजा विलियन प्रथम जर्मन सम्राट बना, उसे कैसर की उपाधि से विभूषित किया गया । विलियम प्रथम का राज्यभिषेक एक प्रसिद्ध बर्साय के महल में संपन्न हुआ। विलियम प्रथम ने  बिस्मार्क को बाजीगर कहा था।
बिस्मार्क ने लौह एवं रक्त की नीति का अनुसरण करते हुए जर्मनी का एकीकरण कर दिया था।

इटली का एकीकरण, italiy ka aikikaran, Unification of Italy

इटली के एकीकरण का जनक जोसेफ मेजिनी को माना जाता है। उसने यंग इटली नामक संस्था की स्थापना की थी। गिबर्टी ने कार्बोनरी नामक गुप्त संस्था की स्थापना की।
इटली में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने का श्रेय नेपोलियन बोनापार्ट को है।
इटली के एकीकरण के मार्ग में ऑस्ट्रिया सबसे बड़ा बाधक था।
उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में इटली कई छोटे-छोटे राज्यों में बंटा था। जिस में सबसे  शक्तिशाली राज्य सार्डिनिया का राज्य था।
1851ई. में पीडमाैंट सार्डिनिया के साथ एक विक्टर इमैनुएल ने काउंट काबूर को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
सन्1854 ईस्वी में क्रीमिया के युद्ध में भाग लेकर काबूर ने इटली की समस्या को अंतरराष्ट्रीय समस्या बना दिया।
एकीकरण के प्रथम चरण में काबूर ने फ्रांस की सहायता से सन् 1858 ईसवी में ऑस्ट्रिया को पराजित कर लोग लोम्बार्डी का क्षेत्र प्राप्त किया।
ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध के समय ही परमा,टस्कनी,मोडेना आदि राज्यों में जनमत संग्रह के आधार पर अपने को सार्डिनिया में मिला लिया था। यह यहां का एकीकरण का द्वितीय चरण था।
एकीकरण के तृतीय चरण का श्रेय गैरीबाल्डी को दिया जाता है। गैरीबाल्डी लाल कुर्ती नामक एक सेना का संगठन किया था।
गैरीबाल्डी को इटली के एकीकरण की तलवार भी कहा जाता है।
तृतीय चरण में गैरीबाल्डी ने सिसली को जीत लिया था। उसके बाद नेपल्स के राजमहल में विक्टर इमैनुएल को संयुक्त इटली का शासक घोषित किया गया था। पीडमाैंट सार्डनिया का नाम बदलकर इटली का राज्य बना  दिया गया था।
सन् 1870 ईस्वी में प्रशा और फ्रांस के बीच युद्ध का लाभ उठाकर रोम पर अधिकार कर लिया ओर उसे  इटली की राजधानी बना दिया गया।
यह एकीकरण का चतुर्थी एवं आखिरी(अंतिम) चरण था ।
इटली के एकीकरण में पूरा पूरा श्रेय मेजिनी काबूर और गैरीबाल्डी को दिया जाता है।

रूसी क्रांति , Rusi kranti,Russian Revolution

रूसी क्रांति 1917 ईसवी में हुई।
रूस के शासक जार कहा जाता था। क्रांति के समय निकोलस द्वितीय  रूस का जार था। उसकी पत्नी जरीना प्रथभ्रष्ट पादरी रास्पुटिन के प्रभाव में थी।
रूस क्रांति का तात्कालिक कारण प्रथम प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय थी।
जार अलेक्सेंडर द्वितीय ने 1862 ईसवी में दास प्रथा का अंत कर दिया था। इसलिए उसे जार मुक्तिदाता कहा गया ।
जनवरी 1905 मे एक दिन जार के पास जा रहे भूखे मजदूरों के समूह पर सेना ने गोलियां बरसाईं। तब से  इसे खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।
वह 7 फरवरी 1917 को रूस में क्रांति का प्रथम विस्फोट हुआ। विद्रोहियों ने रोटी-रोटी का नारा लगाते हुए सड़कों पर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।
जार की सेना ने विद्रोहियों पर गोली चलाने से मना कर दिया।
15 मार्च 1917 को जार निकोलस द्वितीय ने गद्दी त्यागी दी। इसी प्रकार से रूप से निरंकुश राजशाही  का अंत हो गया।
  रूप में साम्यवाद की स्थापना 1898 ईस्वी में हुई थी। कालांतर में वैचारिक मतभेद के आधार पर दो भागो बोल्शेविक तथा मेनशेविक में बट गया था।
बहुमत वाला दल बोल्शेविक कहलाया। इसके लिए नेताओं में लेनिन सर्व प्रमुख था।
अल्पमत वाला दल मेनशेविक कहलाया। इसका प्रमुख नेता करे करेंसकी था।
जार के गद्दी त्यागने के बाद सत्ता मेंनशेविकों के हाथ में आई गई थी करेंसकी प्रधानमंत्री बना। परंतु सरकार जन समस्याओं को सुलझाने में असफल रही। इसका विरोध करने पर लेनिन को निर्वासित कर दिया गया।
अतः बोलशेविक के बल प्रयोग द्वारा सत्ता पलटने की तैयारी शुरू कर दी। 7 नवंबर 1917 को सभी महत्वपूर्ण सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया गया।करेंसकी देश छोड़कर भाग गया।
बोलशेवकों ने एक नई सरकार का गठन किया। जिसका अध्यक्ष लेनिन बना तथा ट्राटस्की को विदेश मंत्री बनाया गया।
साम्यवादी शासन का पहला प्रोग्राम रूस मे ही  हुआ था।
विश्व में इतिहास में पहली बार मजदूर वर्गों के हाथ में शासन सूत्र आया।

जर्मनी में नाजीवाद का उदय

नाजी शब्द हिटलर द्वारा 1921 में स्थापित दल नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्क्स पार्टी के नाम से निकला है। इसी दल को संक्षेप में नाजी पार्टी कहा जाता था।
नाजीवाद फासीवाद का जन्म रूप था। जर्मनी में नाजी दल का उत्थान हिटलर के नेतृत्व में हुआ।
हिटलर का जन्म ऑस्ट्रिया के एक गांव में 1889 ईसवी में हुआ था। गरीबी के कारण उसकी उच्च शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा पूरी नहीं हुई। बाद में हिटलर म्युनिख चला गया और एक चित्रकार बन गया।
प्रथम विश्व युद्ध के समय हिटलर  जर्मनी की सेना में भर्ती हो गया युद्ध के दौरान असाधारण वीरता के कारण उसे आयरन क्रॉस मिला।
युद्धोपरांत वर्साय की संधि से उसको  काफी दुख हुआ। और उसने जर्मन वर्क्स पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।
बाद में जर्मन पर पार्टी का नाम बदलकर नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्क्स पार्टी( राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी )रखा। यह पार्टी नाजी पार्टी के नाम से प्रसिद्ध है ।
1923 में जर्मनी की गैर लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलटने के प्रयास में वह पकड़ा गया तथा उसे सजा हो गई।
जेल में ही उसने मेंन कैंम्फ( मेरा संघर्ष )किताब लिखी यह हिटलर की आत्मकथा है।
हिटलर वर्साय की संधि का विरोधी था।अतः जर्मन देश भक्ति एवं सैनिक अफसर नाजी पार्टी को समर्थन देने लगे।
हिटलर को उसके समर्थक फ्यूरर कहते थे। हिटलर के अनुयाई बांह पर स्वास्तिक का चिन्ह लगाते थे।
हिटलर को राष्ट्रपति हिडेनवर्ग ने 1933 ईस्वी में अपना प्रधानमंत्री (चांसलर) नियुक्त किया।
1934 में हिटलर जर्मनी का तानाशाह बन गया।
हिटलर एक नारा था - एक राष्ट्र, एक देश, एक नेता।
हिटलर ने गुप्तचर पुलिस का संगठन किया, जिसे गेस्टापो को कहा जाता है।
नाजी दल का प्रचार कार्य गोएबल्स संभालता था।
चांसलर बनने के बाद हिटलर ने राष्ट्र संघ की सदस्यता त्याग दी।
हिटलर यहूदियो से से घृणा करता था।
1935 में हिटलर ने पुनः शास्त्रीकरण की घोषणा की।
1 सितंबर 1939 ईस्वी को सेना ने पोलैंड पर आक्रमण किया था।और द्वितीय विश्व की शुरुआत हो गई।
दितीय विश्व युद्ध में पराजय के कारण से 1945 ई० में हिटलर ने आत्महत्या कर ली।

फिर से जागना आंदोलन

  पुनर्जागरण आंदोलन पंद्रहवीं शताब्दी में हुआ था। फिर से जागने का मतलब भी पुनर्जागरण है।
मध्यकाल में यूनानी एवं लैटिन साहित्य को भुलाकर यूरोप की जनता अंधविश्वासों में पड़ गई थी, उसमें निराशा की भावना एवं उत्साहीनता ने जन्म लिया, पुनर्जागरण में मध्ययुगीन आडंबरो,अंधविश्वास एवं अन्य प्रथाओं को समाप्त किया तथा उसके स्थान पर व्यक्तिवाद, भौतिकवाद, स्वतंत्रता की भावना, उन्नत आर्थिक व्यवस्था एवं राष्ट्रवाद  आदि को स्थापित करना ।
पुनर्जागरण का प्रारंभ इटली के फ्लोरेंस नगर से माना जाता है। बिजेंटाइन सम्राज्य की राजधानी कुस्तुनतुनिया का पतन, पुनर्जागरण का एक प्रमुख कारण था।
इटली के निवास पेट्रॉक को मानववाद का संस्थापक माना जाता है ।
इटली के महान कवि दांते को पुनर्जागरण का अग्रदूत माना जाता है ।
उन्होंने इटली की बोलचाल की भाषा टस्कन में डिवाइड कॉमेडी की रचना की।
द लास्ट सपर एवं मोनालिसा नामक चित्रों के रचयिता लियोनार्डो दा विंसी चित्रकार के अलावा मूर्तिकार, इंजीनियर, वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं कवि और गायक थे।
द प्रिंस के रचयिता मैकियावेली को आधुनिक विश्व का प्रथम राजनीतिक चिंतक माना जाता है।
जिआटो को चित्रकला का जनक माना जाता है। कोपरनिकस ने बताया पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और जर्मनी के केपलर ने इसकी पुष्टि की।
इंग्लैंड के रोजर बेकन को आधुनिक प्रयोग का जन्मदाता माना जाता है।
न्यूटन गुरुत्वाकर्षण के नियम का पता लगाया। गैलिलियो ने दोलन संबंधी सिद्धांत दिया ।जिससे वर्तमान में प्रचलित ड़ियों का निर्माण हुआ।

Sunday, January 27, 2019

रोम की सभ्यता,Rom ki sabhyata , Roman civilization

रूम की सभ्यता का विकास यूनानी सभ्यता की अपकर्ष के बाद हुआ।
रोम सभ्यता का केंद्र रोम नाम का नगर था जो इटली में स्थित है।
  रोम की सभ्यता यूनानी सभ्यता से प्रभावित थी।
इटली में एक उन्नत सभ्यता को विकसित करने का श्रेय रोग एट्रस्कन को जाती है ।
रोम एवं कार्थेज के बीच (264 ईशा पूर्व 146 ईसवी पूर्व )तक एक शताब्दी से अधिक तक संघर्ष चला। इस बीच भीषण युद्ध हुये।
इन युद्धों को प्यूनिक युद्ध के नाम से जाना जाता है इस युद्ध में राेम की विजय हुई।
जुलियस सीजर रोम के सम्राज्य का बिना ताज का बादशाह था। इसकी गणना विश्व के सर्वश्रेष्ठ सेनापतियों में की जाती है।
अॉगस्टस(31ई.पू.से 14ई.पू.) का काल रोमन सभ्यता का  स्वर्ण काल माना जाता है।
जुलियस सीजर ने 365 दिनों का बनाया। अस्पतालों के संगठन की कल्पना की देन है रोमन सभ्यता एवं धर्म के क्षमता पर प्रभाव डाला जहां तक धर्म का संबंध है ईसाई धर्म का प्रचार की ही देन है रूम का अंदर में संपूर्ण यूरोप की राजनीति का संचालन की महत्ता उसके प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होती है अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य का जो स्वरूप आज उपलब्ध है वह लैटिन भाषा की ही देन है

यूनान की सभ्यता,Greek civilization, yunan ki sabhyata

यूनान की सभ्यता का यूरोपीय सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है।
क्रीट की सभ्यता प्राचीन यूनानी सभ्यता की जननी कहीं जाती है।
क्रीट राजधानी नासौस थी।
यूनान को हेल्स भी कहा जाता था। इसलिए उसकी पुरानी सभ्यता हेलेनिक सभ्यता भी कहलाती है।
1200 ईसवी पूर्व आर्यों की  डोरियन शाखा ने यूनान में प्रवेश कर वहां अपना प्रभुत्व जमा लिया।
पर्वतीय प्रदेश होने के कारण यूनान छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त हो गया। विभिन्न नगर और राज्यों में स्पार्टा एवं एथेंस अधिक शक्तिशाली एवं प्रभावशाली थे।
स्पार्टा सैनिक तंत्रात्मक राज्य था।
एथेंस में गणतंत्रात्मक पद्धति का विकास हुआथा।
एथेंस में 600 ईसवी पूर्व में ही गणितांत्रिक शासन पद्धति में सफल हुए थे।
पेरिक्लीज(469 ईसवी पूर्व 429 ईसवी पूर्व)का युग युनान के इतिहास में  स्वर्ण युग था।
490 ईशक फारस के राजा ने यूनान पर आक्रमण कर दिया इसलिए दोनों पक्षों में युद्ध शुरू हो गया जो 448 ईसा पुर्व तक चलता रहा।
जिस युग में महान कवि होमर ने अपने दो महाकाव्य ईलियड तथा ओडिसी की रचना की उसे होमर युग नाम से जाना जाता है ।
सिकंदर कालीन युग को हेलिनिस्टिक युग कहा जाता है।
सिकंदर मेसीडोनिया के राजा फिलिप का पुत्र था।
  अरस्तु ने सिकंदर को शिक्षा प्रदान की थी।
भारत पर आक्रमण के क्रम में 326 ईसवी पूर्व में झेलम नदी के तट पर सिकंदर ने राजा पोरस को हराया आया था।
सुकरात, प्लेटो और अरस्तू प्राचीन यूनान के प्रमुख विचारक और दार्शनिक थे।

चीन की सभ्यता, China's civilization,China ki sabhyata

चीन वंश के नाम पर ही पूरे देश का नाम चीन पड़ा था।
ह्यंग-हो नदी की घाटी में प्रचलित प्राचीन चीन की सभ्यता का विकास हुआ है। यह स्थान चीन के उत्तर के क्षेत्र में स्थित है।
यह क्षेत्र विश्व के साथ अधिक उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है।
इसे चीन का बड़ा मैदान कहा जाता है ।
ह्यंग-हो नदी को पीली नदी भी कहते हैं इसलिए चीन की प्राथमिक सभ्यता को पीली नदी घाटी सभ्यता भी कहा जाता है।
इस दौरान चीन में वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण उन्नत हुई।
कागज एवं छपाई का आविष्कार चीन की देन है ।
चीन में रेशम के हल्के वस्त्रों का निर्माण एवं प्रयोग सर्वप्रथम चीन में युवा हुआ। रेशम के कीड़ों का पालन भी सिखाया गया।
ह्यंग टी (लगभग 247  ईसा वर्ष पूर्व ने समस्त चीन को एक राजनीतिक सूत्र में आबद्ध किया।
राजा को  वांग कहा जाता था।
वहां पर चीन में छठी शताब्दी ईसा पूर्व दार्शनिक चिंतन का उद्भव हुआ।
दार्शनिक कन्फ्यूशियस( 551 ईशा पूर्व से 479ईसा पूर्व) को कुंग जू या ऋषि कुंग के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
पुच्छल तारा पहलीबार चीन में 240 ईसवी में देखा गया था।
दिशा सूचक यंत्र का आविष्कार चीन में हुआ था।
चीन के लोगों ने सर्वप्रथम यह पता लगाया कि वर्ष में 365 1/4 दिन होते हैं ।
पेय पदार्थ के रूप में चाय का सर्वप्रथम प्रयोग क्षेत्र में हुआ था।

मेसोपोटामिया की सभ्यता, Mesopotamian Civilization, mesopotamiya ki sabhyata

प्राचीन काल में दजला फरात के बिल्कुल दक्षिणी भाग को सुमेर कहा जाता था।
मेसोपोटामिया की सभ्यता का विकास सर्वप्रथम सुमेर प्रदेश में हुआ था।
सुमेर के उत्तर-पूर्व को बेबीलोन (बाबुल) कहा जाता था।
नदियों के उत्तर की उच्च भूमि का नाम  असीरिया था।
सुमेर बेबीलोन तथा असीरिया सम्मिलित रूप से  मेसोपोटामिया कहलाते थे।
यूनानी भाषा में मेसोपोटामिया का अर्थ नदियों के बीच की भूमि होता है।
मेसोपोटलिया सभ्यता दजला एवं फरात नदियों के बीच के क्षेत्र में विकसित हुई।
मिस्त्र सभ्यता के समकालीन मेसोपोटामिया की सभ्यता विकसित हुई ।
वर्तमान इराक भी  बहुत सी सभ्यताओं का  जन्मदाता रहा है।

सुमेरिया की सभ्यता, sumeriya ki sabhyata, Sumerian civilization

ेसुमेरियनो ने एक बड़े ही संगठित राज्य की स्थापना की।
प्रत्येक नगर राज्य का एक राजा था । राजा को पुरोहित या पतेसी कहा जाता था।
धर्म एवं मंदिरों के लिए विशिष्ट स्थल थे।
देव मंदिरों को जिगुरत कहा जाता था।
राजा ही मंदिरों का बड़ा पुरोहित होता था।
सुमिरयनो की महत्वपूर्ण देन लेखन कला है। उन्होंने एक लिपि का आविष्कार किया, जिसे कीलाकार लिपि कहा जाता है  इस पर भी तेज नोक वाली बस्तु से मिट्टी की पट्टियों पर लिखते थे ।
उन्होंने ही समय मापने के लिए सर्वप्रथम 60 अंक की कल्पना की तथा सर्वप्रथम चंद्र पंचांग का प्रयोग किया।
वृत्त के केंद्र में 360 अंश का कोण बनता है इस मां की कल्पना भी पहली बार  सुमेर के लोगों ने ही की थी।

मिस्र की सभ्यता Egyptian Civilization

मिस्र की सभ्यता का प्रारंभ 3400 ईसवी पूर्व में हुआ था।
मिस्र को नील नदी की देन कहा गया है मिस्र के बीच से नील नदी बहती है, जो मिस्र की भूमि को उपजाऊ बनाती है।
यह सभ्यता प्राचीन विश्व की अति विकसित सभ्यता थी इस  सभ्यता ने विश्व की अनेक  सभ्यताओं को पर्याप्त रूप से प्रभावित किया है।
सामाजिक जीवन में सदाचार का महत्व इसी सभ्यता से प्रसारित हुआ है
सामाजिक जीवन की सफलता के लिए मिश्र निवासियों ने नैतिक नियमों को निर्धारण किया।
मिस्र के राजा को फराओ कहा जाता था उसे ईश्वर का प्रतिनिधि तथा सूर्य देवता का पुत्र माना जाता था।
  मरणोपरांत राजा के शरीर को पिरामिड मे सुरक्षित कर दिया था।
पिरामिडो को बनाने का श्रेय फराओ जोसर के वजीर अमहोटेप को है ।
मिस्र वासियों को मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास था।
मृतकों के शव को सुरक्षित रखने के लिए शवों पर रासायनिक द्रव्यो का लेप लगाया जाता था। ऐसे मृतक के शरीर को ममी कहा जाता था।
शिक्षा के क्षेत्र में सर्वप्रथम व्यवस्थित विद्यालयों का प्रयोग यही हुआ था।
  विज्ञान के क्षेत्र में मिस्र वासी विश्व में अग्रणी समझे जाते जाते हैं। रेखा गणित में जितना ज्ञान उन्हें था उतना विश्व के अन्य लोगों को नहीं था।
कैलेंडर सर्वप्रथम यहीं पर तैयार हुआ। सूर्य घड़ी एवं जल घड़ी का प्रयोग यहीं हुआ।
मानव इतिहास का पहला सिद्धांतवादी अमहोटेप चतुर्थी  था उसे आखनाटन के नाम से भी  जाना जाता है।