प्राचीन काल से भारत के लोग धातुविद्या को अपने व्यवहारिक जीवन में प्रयोग करते हैं। प्राचीन भारत में धातु विद्या के क्षेत्र में आद्वितीय सिद्धियाँ प्राप्त की थी। उदाहरण स्वरूप में सिंधु घाटी से प्राप्त धातु की नर्तकी की प्रतिमा, तक्षशिला से प्राप्त हुई।
कुषाण राजाओं के समय की भगवान बुद्ध की प्रतिमाएंँ चोल राजाओं के समय तैयार हुई धातुशिल्प, चेन्नई के संग्रहालय में रखी गई अंतरराष्ट्रीय प्राप्त नृत्य कला का उत्कृष्ट नमूना महादेव नटराज का शिल्प है।
एक अन्य शिल्प धनुर्धारी श्रीराम का शिल्प भी चेन्नई के संग्रहालय में रखा गया है।
इसके अलावा कलात्मक देवी देवता, पशु-पक्षी तथा सुपारी काटने की सरौंतिया आदि बनाई जाती थी। ये सभी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इन धातुओं को बनाने की परंपरा 10वीं से 11वीं सदी में शुरू हुई थी।
Wednesday, January 16, 2019
धातु विद्या
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