7 वीं सदी के प्रारंभ होने पर हर्षवर्धन अपने भाई राजवर्धन की मृत्यु होने पर कन्नौज की राज गद्दी संभाली 612 ईसवी तक उत्तर में अपना साम्राज्य सुदृढ कर लिया कन्नौज के साथ-साथ थानेश्वर की राजगद्दी संभाली।
620 ईसवी में हर्षवर्धन ने दक्षिण में चालुक्य सम्राज्य ,जिस पर उस समय पुलकेसन द्वितीय का शासन था, पर पर आक्रमण कर दिया परंतु चाल लुक ने जबरदस्त प्रतिरोध किया तथा हर्षवर्धन की हार हो गई।
हर्षवर्धन की धार्मिक सहिष्णुता ,प्रशासनिक दक्षता व राजनयिक संबंध बनाने की योग्यता जगजाहिर है।
उसने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए वअपने राजदूत वहां भेजे, जिन्होंने चीनी राजाओं के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया तथा एक दूसरे के संबंध में अपनी जानकारी का विकास किया।
चीनी यात्री ह्वेनसांग जो उसकी शासन में भारत आया था, चीनी यात्री ने हर्षवर्धन के शासन के समय सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक स्थिति का सजीव वर्णन किया है व हर्षवर्धन की प्रशंसा की है। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत भारत एक बार फिर केंद्रीय सर्वोच्च से वंचित हो गया।
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