गरबा शब्द गर्भ दीप से आया है ।घड़े को रंग कर उस पर दीप रखकर उसे सिर पर रख कर गोलाकार नृत्य करना गरबा है ।
समग्र गुजरात राज्य में गरबा नवरात्रि आसो सुद१ से सुद नवमी दरमियान खेला जाता है शक्ति मां जगदंबा की पूजा और आराधना इस पवित्र पर्व गवरी गुजरी माता जी के गरबे गाते हैं समान रूप से चौक या मैदान के बीच माताजी की मांडवी होती है और उसके घूमते गोलाकार बड़े भाग में तालियों के ताल और ढोल के धवकारों के साथ गरबे होते हैं समान रूप से गरबा में गाने वाले गरबा करने वाले और ढोल के ताल गीत स्वर और ताल प्राप्त करके दो ताली तीन ताली और चिपटी के साथ हाथ के हिलोरो के साथ गरबा गाया जाता है गुजरात में गरबा के उपरांत गाई जाने वाली गर्बियों का संबंध कृष्ण भक्ति के साथ है गुजराती कवि दयाराम ने गोपी के भाव में श्री कृष्ण प्रेम की रंग भरी गर्बियो की रचना कर गुजराती महिलाओं के कंण्ठो गूंजती दी।
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