भारत में कृषि 6के प्रकार से की जाती है
१ जीवन निर्वाह कृषि- आजादी के बाद आयोजन पंच के द्वारा अनेक योजनाएं लागू करने के उपरांत भी अनेक किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर थी जिसके कारण किसान महंगे बीज खाद और जंतु नाशक दवाओं का उपयोग करना उसे महंगा पड़ रहा था और खेती में होने वाला अनाज उसके घर में ही खाने और पीने में चला जाता था वह अपने परिवार के भरण-पोषण में ही खर्च हो जाता था अतः उसे आत्मनिर्भर कृषि या जीवन निर्वाह कृषि कहते हैं।
२ शुष्क खेती - जहां बरसात कम होती है और सिंचाई की सुविधा भी कम है वहाँ शुष्क खेती की जाती है ।
इस प्रकार की कृषि में नमी का बहुत महत्व होता है यहां वर्ष में मात्र एक ही फसल ले सकते हैं यहां ज्वार बाजरा और दलहने कम पानी की आवश्यकतावाली फसले ली जाती है।
३ अार्दृ खेती- जहां वर्षा अधिक होती है और सिंचाई की सुविधा भी अधिक है ऐसे क्षेत्रों में आद्र कृषि ली जाती है इस प्रकार की खेती में वर्ष में एक से अधिक फसल ले सकते हैं यहां गन्ना ,धान, हरी शाक-सब्जी की खेती होती है ।
४ स्थानांतरित खेती- इस प्रकार की खेती में जंगलों के वृक्षों को काटकर जमीन साफ की जाती है दो-तीन वर्ष के बाद जमीन के उपजाऊपन में कमी होने से उस क्षेत्र को छोड़कर दूसरे स्थान पर इसी तरह की खेती की जाती है इस तरह की खेती को झूम खेती यह स्थानांतरित खेती कहते हैं इस कृषि में सूखे अनाज और सब्जियों की खेती होती है।
५ बागायती खेती- इस प्रकार की खेती एक विषय विशेष प्रकार की खेती है इसमें रबड़ ,चाय, कॉफी कोको, नारियल के उपरांत अमरूद ,आम, संतरा ,अंगूर, सेव ,आँवला ,नींबू आदि की फसलें की जाती है ।इस प्रकार की खेती आंधिक पूंजी निवेश, कुशलता ,तकनीकी ज्ञान ,यंत्र, खाद ,सिंचाई , देखभाल ,संग्रह और परिवहन की पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए तभी ये खेती होती है।
६ सघन खेती- जहां पर सिंचाई की अधिक सुविधा हो, वहां का किसान खाद और जंतु नाशक दवाओं , यंत्रों की खेती में व्यापक उपयोग करता है। परिणाम स्वरूप खेती का उत्पादन बढ़ता है। खेती के इस प्रकार को सघन खेती कहते हैं
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