दृविड़ भारत के मूल नागरिक थे। उन्हें मोहें-जो-दड़ो की सिंधु संस्कृति के सर्जक और पाषाण संस्कृत के निर्माता माना जाता है।
द्रविड़ माता के रूप में देवी पार्वती और पितृ रूप में परमात्मा शिव की आराधना करते थे।
धूप दीप और आरती से पूजा की परंपरा द्रविड़ प्रज्ञा ने शुरू की थी।
द्रविड़ के मूल देवता आर्यो ने स्वीकार की थी, समय बीतने पर उत्तर के प्रचंड प्रभाव के आधीन द्रविडो़ में आर्य संस्कृति गहराई तक व्याप्त हो गई अंतरजातीय विवाह भी प्रसारित किए।
दृविड़ो में मातृ परिवार प्रथा प्रचलित थी बे अवकाशीय ग्रहों के क्षेत्र में और विविध कलाओं जैसे कताई -बुनाई ,रंगना, नाव निर्माण जैसे क्षेत्रों में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।
आज दक्षिण भारत में दृविड़ कुल की तमिल, तेलुगू ,कन्नड़ और मलयालम जैसे भाषाएँ बोलने वाले लोग बसते हैं।
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